Saturday, April 15, 2017

बाबासाहेब और ब्राह्मणवाद..

साहित्यकार कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का एक निबंध है- पाप के चार हथियार। इसमें उन्होंने इस सवाल पर काफ़ी रोचक ढंग से विचार किया है कि, संसार में अब तक इतने सुधारक और संत हो चुके, इसके बावजूद यहाँ की स्थितियाँ बहुत क्यों नहीं बदली, शायद इसलिए क्योंकि धरती पर मौजूद ‘पाप’ रूपी प्रतिगामी शक्ति ने इन सभी प्रतिभाशाली शख्सियतों के समाज-परिवर्तनकामी और क्रांतिकारी विचारों को अपने हथियारों क्रमश: ‘उपेक्षा’, ‘निंदा’, ‘हत्या’ और ‘श्रद्धा’ के उपयोग से खत्म कर दिया और न केवल अपनी सत्ता बनाए रखी बल्कि उसे और मजबूत किया...ब्राह्मणवाद रूपी ‘पाप’ ऐसी ही एक सत्ता है, उसने बुद्ध, कबीर और रैदास जैसी शख्सियतों की पहले तो ‘उपेक्षा’ की, जब उनके विचार इस ‘उपेक्षा’ से प्रभावित नहीं हुए, तो उनकी निंदा की गई, इससे भी बात नहीं बनी, तो उनकी और उनके विचारों की हत्या के षड्यन्त्र रचे गए, पर जब इससे भी ‘पाप’ के मनोनुकूल स्थितियाँ नहीं बनीं, बल्कि ‘पाप’ के विरुद्ध सुधारकों और संतों की क्रांतिकारिता और प्रखर हुई, तो आखिर में ब्राह्मणवाद रूपी ‘पाप’ ने उन पर अपना ब्रह्मास्त्र ही चला दिया, अब उन्हें ‘श्रद्धा’ दी जाने लगी, उन्हें ‘अवतार’ घोषित किया जाने लगा, उनके मठ, मंदिर और स्मारक बनाए जाने लगे, उनके ग्रंथों के मनमाने पाठ किए जाने लगे और अंतत: उन सुधारकों और संतों को आस्था और पूजा का विषय बनाकर उनके सत्य को, उनके समाज-परिवर्तनकामी और क्रांतिकारी विचारों की पूरी तरह उलटकर दिया जाता है। ‘प्रभाकर’ ने लिखा है कि, ऐसे में पाप का नारा हो जाता है- ‘महाप्रभु सुधारक वन्दनीय है, उनका सत्य महान है, वह लोकोत्तर है।’ ‘यह नारा ऊँचा उठता जाता है, अधिक से अधिक दूर तक उसकी गूँज फैलती रहती है, अधिक से अधिक लोग उसमें शामिल होते रहते हैं, पर अब सबका ध्यान सुधारक में नहीं, उसकी लोकोत्तरता में समाया रहता है। ‘श्रद्धा’ रूपी पाप का यह ब्रह्मास्त्र अतीत में अजेय रहा है और वर्तमान में भी अजेय है। कौन कह सकता है कि भविष्य में कभी कोई इसकी अजेयता को खण्डित कर सकेगा या नहीं!’
क्या बुद्ध, कबीर और रैदास के बाद अब बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर पर भी यही ‘श्रद्धा’ रूपी ब्रह्मास्त्र नहीं साधा जा रहा है, क्योंकि ‘उपेक्षा’, ‘निंदा’ और उनके विचारों की सीधे-सीधे ‘हत्या’ के प्रयास के बावजूद ब्राह्मणवाद रूपी ‘पाप’ उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया; लेकिन अब बेहद सतर्क हो जाने की जरूरत है, ‘पाप’ के कार्यकलापों के साथ अपने ‘आत्मलोचन’ की भी जरूरत है कि कहीं जाने-अनजाने हम ही तो ‘पाप’ को उसके मंसूबों में सफ़ल नहीं होने दे रहे हैं या खुद ही ‘पाप’ की ओर हो गए हैं.. हमें किसी भी हालत में ‘पाप’ के इस ब्रह्मास्त्र का विजयरथ रोकना ही होगा..हम अनुयायी हों, प्रेरणा लें और देने योग्य बनें, पर अंधभक्त कतई नहीं..विवेक को जाग्रत रखें, वरना गर्व करने को कुछ नहीं रह जाएगा..
(भाषा पुरानी सही पर है गौरतलब)

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