Monday, March 18, 2019

पूर्वोत्तर में हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन संबंधी कुछ सुझाव

पूर्वोत्तर में अनेक वर्षों से रहने के दौरान यहाँ हिन्दी पठन-पाठन की स्थिति को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मेरे मन में कुछ विचार/सुझाव उभरे हैं, जिन्हें मैं विनम्रतापूर्वक आप सबके सम्मुख रख रहा हूँ, इनमें कुछ उथलापन भी हो सकता है। बहरहाल,
कृपया इन पर एक बार गौर करें और इनकी उपयोगिता/अनुपयोगिता/आवश्यकता पर टिप्पणी देवें, साथ ही; अपने सुझावों से भी परिचित कराएँ-
हम सब जानते हैं कि हिन्दीतर क्षेत्र होने के कारण पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों की भाषिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति भिन्न है। यहाँ के प्रत्येक राज्य में स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी का पठन-पाठन तो हो रहा है, लेकिन मिजोरम (यहाँ ‘पूर्वोत्तर भारत और हिन्दी साहित्य’ शीर्षक से एक मुख्य-पत्र रखा गया है) के अलावा एक भी विश्वविद्यालय में हिन्दी के पाठ्यक्रम में स्थानीय साहित्य को प्रधानता नहीं दी गई है। अधिकतर जगहों पर उसे (प्राय:) चतुर्थ सत्र में वैकल्पिक पेपर (Elective) के रूप में रखा गया है। संभवतया इस कारण स्थानीय (हिन्दीतरभाषी) विद्यार्थी अक्सर ठीक से ‘कंटेंट’ (हिन्दी साहित्य) समझने के बजाय ‘फॉर्म’ (भाषा) समझने के लिए जूझते हैं।
1. इस क्रम में मेरा पहला सुझाव है कि पूर्वोत्तर के विद्यार्थियों को पहले उनके स्थानीय साहित्य से हिन्दी में परिचित कराया जाना चाहिए (यानी ‘कंटेंट’ स्थानीय साहित्य का रहे और माध्यम हिन्दी भाषा हो), ताकि वे स्नातकोत्तर हिन्दी पढ़ते समय ‘नेटिव’ (सहजता और अपनत्व) महसूस कर सकें। इसके लिए बेहतर होगा कि स्थानीय विद्यार्थियों के अनुरूप पूर्वोत्तर के सभी विश्वविद्यालयों का एक कॉमन हिन्दी पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए। उक्त पाठ्यक्रम में एमए हिन्दी के प्रथम सत्र में स्थानीय साहित्य को लागू किया जाए, इसमें दो पत्र राज्य विशेष से संबंधित एवं दो पत्र पूर्वोत्तर भारत के साहित्य पर केन्द्रित हों, ताकि विद्यार्थी अपने साहित्य और हिन्दी भाषा के प्रति सहजता और अपनत्व का अनुभव कर सके, इसके लिए आवश्यकतानुसार स्थानीय साहित्य का स्तरीय हिन्दी अनुवाद कराया जाए (इससे पूर्वोत्तर का साहित्य हिन्दी की बृहत्तर दुनिया से भी जुड़ सकेगा; जहाँ अभी तलक पूर्वोत्तर के बारे में बेहद उथली समझ बनी हुई है)।
2. स्नातकोत्तर प्रथम सत्र के इन पत्रों में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा द्वारा पूर्वोत्तर की भाषाओं और हिन्दी को लेकर बनाए गए अध्येता-कोशों को भी शामिल किया जाए।
3. यहाँ की भाषाओं की वर्तनियाँ देवनागरी लिपि से भिन्न हैं, इसलिए विद्यार्थी हिन्दी में वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ बहुत करते हैं। वर्तनी में सुधार के लिए विद्यार्थियों से हिन्दी लिखवाना तो जरूरी है ही, साथ ही; उन्हें स्नातकोत्तर के दौरान उन्हें यथासंभव उन क्षेत्रों में भी ‘विजिट’ भी कराया जाना चाहिए, जिनका साहित्य उन्हें पढ़ाया जा रहा है। इस क्रम में ऑडियो-विजुअल माध्यमों का सहारा भी लेना अपेक्षित होगा।
4. पूर्वोत्तर के हिन्दी विभागों में शिक्षण-कार्य कर रहे अधिसंख्य या तो शिक्षक मूलत: हिन्दी भाषी हैं, या वे मूलत: हिन्दी साहित्य पढ़कर आए हैं; स्वयं उन्हें भी बेहतर हिन्दी शिक्षण हेत स्थानीय विद्यार्थियों के समाज, संस्कृति और साहित्य की समझ रखना जरूरी है। इस क्रम में पूर्वोत्तर में आकर पढ़ाने वाले हम जैसे हिन्दीभाषी शिक्षकों को खासतौर पर उदारता एवं सावधानी बरतनी जरूरी है। हमें स्थानीय विद्यार्थियों के अनुरूप यहाँ के समाज, संस्कृति, भाषा एवं साहित्य को समझकर तैयार होना होगा। इससे पढ़ाते समय स्थानीय साहित्य से हिन्दी की तुलना कर विद्यार्थियों से आसानी से जुड़ा जा सकेगा, तो विद्यार्थी भी विषय के साथ सहज हो सकेंगे। (इस क्रम में स्थानीयभाषी हिंदी शिक्षकों की चुनौतियाँ थोड़ी भिन्न हैं, उनके निदान पर भी अलग से विचार किया जाना चाहिए।)
5. पूर्वोत्तर में हिन्दी पढ़ाने वाले नए शिक्षकों को खासतौर पर स्थानीय समाज, संस्कृति एवं साहित्य के अध्ययन व समझ हेतु संबंधित प्रदेश के प्रमुख समाजों में ‘विजिट’ करना उचित होगा, उन्हें संबंधित साहित्य भी उलब्ध कराया जाए, अन्यथा साहित्यिक विषयों से संबंधित फ़िल्में, नाटक आदि तो देखे ही जाएँ।
6. उक्त सुझावों पर विचार करते समय एक प्रश्न यह आएगा कि, इससे पूर्वोत्तर के विद्यार्थी NET पास नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वे एक सेमेस्टर में स्थानी साहित्य पढ़ने के कारण हिन्दी साहित्य कम पढ़ेंगे। तो, रोजगार को ध्यान में रखते हुए इसका एक उपाय यह हो सकता है कि पूर्वोत्तर के लिए विशेष तौर पर आयोजित होने वाले NE-SLET हिन्दी विषय के पाठ्यक्रम में भी पूर्वोत्तर के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम की तरह स्थानीय साहित्य को जोड़ा जाए, इसके बाद उसे NET के समकक्ष मान्यता दे दी जाए, ताकि यहाँ के विद्यार्थी पूर्वोत्तर समेत देशभर के अभ्यर्थियों के साथ कम्पीटीशन कर सकें और नौकरी हेतु योग्य भी हो सकें।

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-03-2019) को "मन के मृदु उद्गार" (चर्चा अंक-3279) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'