Tuesday, March 20, 2012

खीझ भरी कविता..


कुछ कविताओं पर आता है लाड़
और कुछ पर गहरी खीझ
बावजूद इसके
मुझे कविता पढ़ना
उसके भावों में डूबना
अर्थ खंगालना
जितना अच्छा लगता है
भय लगता रहा उतना ही
कविता लिखने से..
मुझे माफ़ करना मेरे कवि मित्रो!
पर जैसी कविताएँ आजकल आ रही हैं
प्राय:
उनमें डूबना जितना मुश्किल है
गुजरना उतना ही आसान
और अर्थ खोजना तो..
शायद मैंने अपना भय जीत लिया है
अब मैं भी लिख सकता हूँ
एक खीझ भरी कविता..

2 comments:

manju vashistha said...

bahut khub likha he aapne lagta he yah her kavi ki manahisthi rahti hogi kavita likhne se pehle.

manju vashistha said...

bahut khub likha he aapne lagta he yah her kavi ki manahisthi rahti hogi kavita likhne se pehle.