Tuesday, October 14, 2014

‘तितास एक नदी का नाम’- अद्वैत मल्लबर्मन के उपन्यास ‘तितास एक्टि नदीर नाम’ का हिन्दी अनुवाद..

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ये है बांग्ला साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकार श्री अद्वैत मल्लबर्मन के उपन्यास ‘तितास एक्टि नदीर नाम’ का हिन्दी अनुवाद- ‘तितास एक नदी का नाम’। मानव प्रकाशन, कोलकाता से पुस्तक आज ही मिली है। सन 1956 में प्रथम बार प्रकाशित इस रचना का प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता श्री उत्पल दत्त द्वारा 1963 में भारतीय गणनाट्य संघ के प्रयास से नाट्य-रूपांतर और मंचन किया गया था, जिसमें स्वयं उत्पल दत्त के साथ-साथ विजन भट्टाचार्य और चर्चित गायक निर्मलेन्दु चौधरी ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाई थीं। इसके बाद 1993 में नाटककार शान्तनु कायदार द्वारा अबुल खैर और मोहम्मद युसुफ़ के साथ कुमिल्ला (अब बांग्लादेश में) में इसका मंचन किया गया। प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्माता और पटकथा लेखक श्री ऋत्विक घटक ने 1973 में इस पर ‘तितास एक्टि नादिर नाम’ शीर्षक से ही बांग्ला में एक फ़िल्म बनाई थी, जिसे 2010 में आयोजित 63वें काँस फिल्मोत्सव में ‘काँस क्लासिक’ के तहत प्रदर्शित किया गया था। ‘तितास’, ‘मेघना’ (अब मुख्यत: बांग्लादेश में बहने वाली) से टूटकर बनी एक नदी का नाम है, लेकिन इस उपन्यास में अद्वैत ने उसे मानवीकृत रूप में चित्रित किया है। इसके किनारे मनुष्य-जीवन की अनेक छवियाँ अंकित हैं। अपने नग्न-यथार्थ, सुगठित कथन-शैली, मिथकीय व्याख्या, भव्य-संरचना और संगीतमय कथानक के कारण यह उपन्यास समकालीन बांग्ला साहित्य में बेहद समादृत है। देश-विभाजन से पहले हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच जो मिठास थी, उसका वर्णत तो ‘तितास’ में आया है, लेकिन विभाजन के बाद दोनों संप्रदायों में आई तितास को इस ‘तितास’ में नहीं दिखाया गया है। मुस्लिम खेतिहरों और हिन्दू मछेरों की संस्कृति का एका इस रचना की रीढ़ है लेकिन तत्कालीन बंगाली समाज में मौजूद रही ‘छुआछूत’ और ‘जातिप्रथा’ के प्रसंग भी अपनी पूरी प्रखरता के साथ आए हैं, यही कारण है कि बांग्ला दलित साहित्य एवं विमर्श में इस उपन्यास को दलित अभिव्यक्ति की पहली महत्त्वपूर्ण रचना का दर्जा हासिल है। आपकी सूचनार्थ यह भी कि वर्ष 2014 अद्वैत मल्लबर्मन का जन्म शताब्दी वर्ष है। हिन्दी में अनूदित यह कृति अद्वैत की स्मृति के प्रति हमारी श्रद्धांजलि..

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