Friday, May 28, 2010

वर्ल्ड-क्लास रेलवे स्टेशन का पूछताछ-केन्द्र

सत्ताइस मई की एक भभकती शाम। देश की राजधानी दिल्ली। मुझे अपने एक रिश्तेदार को लेने नई दिल्ली स्टेशन जाना था। आजकल रास्ते में जगह-जगह राष्ट्रमंडल खेलों के बड़े-बड़े होर्डिंग टंगे हैं। बाहरी चमक-दमक पर जोर-शोर से काम चल रहा है। अभी खेलों के नाम पर दिल्ली सरकार ने महँगाई बढ़ाई ही है। जिस पर खूब बयानबाजी, शोर-शराबा मचा, पर न कुछ होना था, न हुआ। खैर, मैं स्टेशन पहुँचा। ट्रेन आने में एक घण्टा था। प्लेटफॉर्म के अन्दर जाने से पहले मुझे हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ याद आ गई। और याद आया हमारी माननीय रेलमंत्री का वह बयान भी, जिसमें उन्होंने कहा था कि, "भगदड़ के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं, हम क्या करें"। प्लेटफॉर्म संख्या एक पर टिकट लेने के लिए खिड़की की तरफ़ बढ़ रहा था कि बगल में इन्क्वायरी-विन्डो पर नज़र चली गई। वहाँ अपनी गाड़ी की स्थिति का पता करने वालों की भीड़ जुटी थी। लोग एक-दूसरे से आगे होकर किसी तरह पूछ्ताछ-खिड़की तक पहुँचने में प्रयासरत थे। तभी माइक पर अन्दर बैठे ’सज्जन’ की कर्कश आवाज गूंजी- "पीछे हो जा पीछे। अरे ओए पगड़ी वाले, तेरे को बोल रहा हूँ....अबे तेरे बाप पुलिसवाले को बुलाऊँ क्या....साले....कुत्ते..सुन नहीं रहा है क्या..अभी तेरा बाप आकर पिछवाड़े को लाल करेगा तब हटेगा तू.."। ये हाल है देश की राजधानी दिल्ली के ‘वर्ल्ड-क्लास रेलवे स्टेशन’ के पूछताछ-केन्द्र का। जिन बुजुर्ग को सम्बोधित कर ये गालियाँ दी जा रही थी, उनके चेहरे पर इतनी भीड़ में किसी तरह आगे निकलकर पूछताछ-खिड़की तक तुरन्त पहुँच जाने का अपराधबोध, पूछी गई गाड़ी की जानकारी न मिलने का दुख और पुलिसवाले से मार खाने का खौफ़ साफ़ देखा जा सकता था। बस नहीं था तो सबके सामने बेइज्जत कर दिए जाने का रोष। मानहानि क्या होती है? पता नही। शायद बड़े लोगों का चोंचला होगा! इन्क्वायरी-कक्ष का वह  कर्मचारी उस बुजुर्ग  पर चीख रहा था पर इतनी भीड़  में किसी की आवाज नहीं निकली। सबको अपनी बारी की पड़ी थी। हांलाकि मैंने थोड़ा आगे बढ़कर उसका नाम देखने की चेष्टा की पर उसने नाम-पट्टिका नहीं लगा रखी थी। मुझे बार-बार भारतीय रेल का सूत्र वाक्य “ग्राहकों की सेवा मुस्कान के साथ“ याद आ रहा था, साथ ही रेलमंत्री का वह बयान भी कि लोग ऐसी घटनाओं के लिए खुद जिम्मेदार हैं।

2 comments:

PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिड said...

जय कौशल जी, यह भारत है !!! यहाँ ऐसा न हो तो आश्चर्य होता है!!! रही बात कामनवेल्थ की तो वह तो हेकड़ी ज़माने का माध्यम मात्र है. वैसे भी उसमे आने वाले वाले मेहमान ट्रेन से नहीं हवाई जहाज और बसों में सफ़र करेंगे. अधिक से अधिक मेट्रो. आपका अनुभव दुखती राग पर हाथ रखता है. आपने आज रखा फर्क बस यही है. पुखराज जांगिड़.

Dr Sunil Kumar Suman said...

इस देश में रेलवे का बुरा हाल है। कोई माई बाप नहीं है। एकबार मेरे एक मित्र को कहीं जाना था। घोषणा होती रही कि ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 09 से जाएगी। सारे लोग वही जमा थे, अचानक घोषणा हुई कि 03 नंबर से जाएगी। सारे लोग उधर दौड़े , भगदड़ मची, कई लोग पीछे छुट गए, तब तक ट्रेन चल पड़ी। वो दुरन्तो एक्सप्रेस थी। रेलवे पूछताछ का तो और बुरा हाल है।