ओलंपिक में स्पेन की खिलाड़ी केरोलिना मेरीन और भारत की पी वी सिंधु के
बीच फाइनल मुकाबला देखा। ग़ज़ब का खेल। पहला मैच सिंधु ने जीत लिया था, लेकिन
उसके बाद के दोनों मुकाबले मेरीन ने शानदार ढंग से जीते और गोल्ड मैडल
हासिल किया। सिंधु को सिल्वर मिला। वैसे भारत को ओलंपिक में सिल्वर मैडल भी
पहली बार मिला है। इसलिए ये गर्व का क्षण है हमारे लिए। पी वी सिंधु पहली
भारतीय महिला हैं, जिन्होंने देश को सिल्वर मैडल से नवाजा है। सिंधु और
मरीन दोनों खिलाड़ियों का खेल काबिले-तारीफ़ था। सही मायने में
विश्वस्तरीय। दोनों अपनी सर्वोत्तम रणनीति के साथ खेलीं। दिल से
बधाई..लेकिन एक बात नोट करने लायक मिली। मेरीन पूरे खेल के दौरान बीच-बीच
में अपने आप से बातें करती दिखीं। वे जब जीततीं तो खुद को शानदार ढंग से
चीयर-अप करतीं और जब पॉइंट लूज करतीं तो खुद से बात कर अपना आत्मविश्वास
बढ़ातीं रहतीं। शायद इससे भी उनके खेल में लगातार गुणात्मक बढ़ोतरी होती दिख
रही थी। उन्होंने जीतने को तो बेहद उत्साह से लिया ही, हारते समय अपना
आत्मविश्वास लगातार बढ़ाया और उसे स्पीड, शॉट्स, स्मैश और तेज रिटर्न्स में
बदला। मुझे लगता है हम सबको भी खुद से समयानुसार संवाद करना चाहिए, इससे
मुश्किल परिस्थितियों में आगे बढ़ने का आत्मविश्वास तो मिलेगा ही, जीत का भी
असली आनंद आ जाएगा। दूसरों से ये उम्मीद करने के बजाय कि कठिन समय में
हमें कोई आकर संभालेगा, उससे बेहतर है हम खुद ही खुद को संभालना शुरू कर
दें। इससे भी हमारे परिणामों में कमाल का परिवर्तन आ सकता है।
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